EU की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक, नए इकोडिजाइन और एनर्जी लेबलिंग नियम स्मार्टफोन्स की लाइफ बढ़ाने और ई-वेस्ट को कम करने के लिए बनाए गए हैं। इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि कंपनियों को अपने डिवाइसेज इस तरह डिजाइन करने होंगे कि वो ज्यादा टिकाऊ और आसानी से रिपेयर होने लायक हों। इसके साथ ही हर डिवाइस को एनर्जी एफिशिएंसी, बैटरी परफॉर्मेंस और रिपेयरबिलिटी के आधार पर एक लेबल दिया जाएगा, ताकि यूजर्स खरीदते समय पूरी जानकारी के साथ फैसला ले सकें।
Android Police की एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि यह बदलाव स्मार्टफोन इंडस्ट्री के लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है। अभी तक सिर्फ Google और कुछ टॉप ब्रांड्स जैसे Samsung और Motorola ही प्रीमियम मॉडल्स के लिए लंबे अपडेट वादे करते रहे हैं। लेकिन अब EU की वजह से मिड-रेंज और बजट सेगमेंट वाले डिवाइसेज में भी लंबी अपडेट पॉलिसी देखने को मिल सकती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कंपनियां पूरे ग्लोबल पोर्टफोलियो के लिए एक जैसी पॉलिसी अपनाना पसंद करती हैं, इसलिए इन नियमों का फायदा भारत जैसे देशों में भी मिल सकता है।
भारत में पिछले साल USB-C चार्जिंग को लेकर भी ऐसा ही असर दिख चुका है। EU के आदेश के बाद Apple ने iPhone 15 सीरीज में टाइप-C पोर्ट देना शुरू किया, जो सीधे तौर पर भारत जैसे बाजारों के लिए भी फायदेमंद रहा। अब उम्मीद की जा रही है कि इसी तरह 5 साल तक अपडेट देने वाला नियम भी भारतीय यूजर्स को मजबूती देगा, जिससे फोन बार-बार बदलने की जरूरत कम पड़ेगी और एक डिवाइस ज्यादा समय तक भरोसेमंद बना रहेगा।
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